हिन्दी-अंग्रेजी पर्यावाची एवं विपर्याय कोश: Hindi-English Synonym and Antonym Dictionary

हिन्दी-अंग्रेजी पर्यावाची एवं विपर्याय कोश: Hindi-English Synonym and Antonym Dictionary

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Book Specification

Item Code: NZA625
Author: बदरीनाथ कूपर: (Badrinath Kapoor)
Publisher: Lokbharti Prakashan
Language: Hindi Text with English Traslation
Edition: 2012
ISBN: 9788180316296
Pages: 464
Cover: Hardcover
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 550 gm

Book Description


पुस्तक के विषय में

इस कोश में 5000 से कुछ अधिक ही पर्यायमालाएँ दी गई हैं जिनमें 30000 से अधिक पर्याय शब्दों का संकलन हुआ है । सहस्राधिक मालाएँ बिलकुल नई हैं । पर्यायमालाओं के निर्धारण में प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण किया गया है । एकाधिक अर्थों के सूचक शब्दों को पर्यायमाला में सम्मिलित नहीं किया गया है । संज्ञा-सूचक शब्दों के पर्याय के रूप में विशेषण-सूचक शब्दों को भी शामिल कर लेने के अभ्यास से इस कोश को सचेत रूप से मुक्त रखा गया है । प्रचलन से बाहर हो चुके शब्दों को पर्यायमालाओं के निर्धारण में शामिल नहीं किया गया है । कभी-कभी कुछ कोशकार ऐसे शब्दों को भी परस्पर पर्याय घोषित कर देते हैं जिनके अर्थों में कुछ भी समानता नहीं होती । यह कोश इस दोष से सर्वथा मुक्त हैं । कुछ ऐसी पर्यायमालाएँ भी हैं जिनके एक से अधिक शब्द प्रमुख प्रतीत होते हे । ऐसी स्थिति में निर्णय करना कठिन होता है कि किस शब्द को प्रमुख शब्द माना जाए । इसलिए इस कोश में कुछ ऐसी मालाएँ हैं जो दो-दो मूल शब्दों के अंतर्गत रखी गई है । ऐसा पाठकों की सुविधा की दृष्टि से किया गया हैं । पर्यायमाला में शब्दों के क्रम का निर्धारण कोश विज्ञान के नियमानुसार किया गया है ।

एक उल्लेखनीय विशेषता यह भी है कि इस कोश में प्रचलित साहित्य तथा लोक जीवन से भी पर्याय-शब्द सम्मिलित किए गए हैं । कोश में पर्याय वर्णानुक्रम में रखे गए है, जिससे इस कोश में पर्यायों की खोज सर्वथा सुगम है । प्रत्येक पर्यायमाला के साथ कुछ अंग्रेजी समानक या तदर्थी शब्द इस कोश में दिए गए हैं जिससे कोश की गुणवत्ता बढ़ गई है । इस कोश में पहली बार विपर्यायों की लंबी सूची भी दी गई है।

अध्यापकों, विद्यार्थियों, लेखकों, शोधार्थियों व पत्रकारों के लिए यह कोश संग्रहणीय हैं ।

डॉ. बदरीनाथ कपूर

जन्म : 1932 में पंजाब के जिला गुजरानवाला में ।

शिक्षा : शिक्षा-दीक्षा बनारस में ।

गतिविधियां : 1950 से आचार्य रामचंद्र वर्मा के साथ विभिन्न स्तरों पर कोश कार्य । 1956 से 1965 तक मानक हिंदी कोश में सहायक संपादक के रूप में कार्य और 1983 से 1986 तक जापान सरकार के आमंत्रण पर टोक्यो विश्वविद्यालय में अतिथि आचार्य ।

साहित्य सेवा : वैज्ञानिक परिभाषा कोश, आजकल की हिंदी, हिंदी अक्षरी, अंग्रेजी- हिंदी पर्यायवाची कोश, शब्द-परिवार कोश, लोकभारती मुहावरा कोश, नूतन पर्यायवाची कोश, परिष्कृत हिंदी व्याकरण, हिंदी व्याकरण की सरल पद्धति, लिपि, वर्तनी और भाषा, मीनाक्षी हिंदी-अंग्रेजी कोश तथा अंग्रेजी-हिंदी कोश । हिंदी के भाषा प्रयोगों पर नवीन कृति-आधुनिक हिंदी प्रयोग कोश ।

भूमिका

1935 मे हिन्दी का प्रथम पर्यायवाची कोश काशी से प्रकाशित हुआ था जिसके संपादक थे सेन्ट्रल हिन्दू- स्कूल के प्राध्यापक पं. श्रीकृष्ण शुक्ल विशारद । शुक्ल जी लाला भगवानदीन जी के प्रिय शिष्यो में से थे और उन्हीं की सत्प्रेरणा से पर्यायवाची कोश के संपादन में प्रवृत्त हुए थे उन दिनों हिन्दी में जितने शब्दकोश प्रकाशित हुए थे वे सब के सब पाश्चात्य अक्षरक्रमवाली पद्धति पर बने थे और शुक्ल जी का यह कोश ही ऐसा कोश था जो प्राचीन भारतीय कोश पद्धति पर अर्थात् संस्कृत की अमरकोशवाली पद्धति पर आधारित था पाश्चात्य पद्धति का मुख्य उद्देश्य शब्द के अर्थ का ज्ञान कराना होता है जबकि प्राचीन भारतीय पद्धति का मुख्य उद्देश्य विषय के आधार पर शब्द का ज्ञान कराना होता है। कहना न होगा कि अंग्रेजी के राजेट कृत थेसारस (THESAURUS) का निर्माण इसी भारतीय पद्धति पर ही हुआ हे ।

सामान्य शब्दकोश में सभी शब्द अक्षरक्रम से रखे जाते है इसलिए उन्हे ढूँढने में विशेष प्रयास अपेक्षित नहीं होता परन्तु पर्यायवाची कोशो मे विभिन्न विषयों के आधार पर बनाए हुए खंडों तथा वर्गों में से शब्द खोजना पड़ता है यह कार्य अपेक्षाकृत अधिक समयसाध्य तथा श्रमसाध्य होता हे । शुक्ल जी ने अपने पर्यायवाची कोश को चार खंडों में विभाजित किया है। प्रथम खंड मे देव आदि शब्दों के पर्याय दिए हैं । इसमे 267 पर्यायमालाएँ हैं जो 6 वर्गों में विभाजित है । दूसरा जलस्थल खंड है जिसमे 586 पर्यायमालाएँ हैं । यह 15 वर्गां में विभाजित किया गया है। तीसरा खंड मानवजगत है जिसमे 998 पर्यायमालाएँ हैं जिन्हें 11 वर्गों मे विभाजित किया गया है। चोथा और अंतिम मानवेतर जीव खंड है जिसमें 400 पर्यायमालाएँ हैं जिन्हें 5 वर्गों मे बाँटा गया है। इस प्रकार इस कोश में 2251 पर्यायमालाएँ हैं जो चार खंडों मे 37 वर्गों में विभाजित हैं।

उक्त कोश प्रारंभिक प्रयास था इसलिए इसमें कमियों का रह जाना स्वाभाविक था। पहली कमी यह थी कि इसमें सामान्य व्यवहार के शब्द कम थे, नामवाची शब्दों की ही भरमार थी । दूसरी कमी यह थी कि पर्यायमालाएँ जिस जिस प्रमुख शब्द के अंतर्गत रखी गई थीं उनका कोई क्रम नही था कभी-कभी तो यह सोच पाना भी कठिन हाता है कि कौन प्रमुख शब्द किस खंड के किस वर्ग में मिलेगा। उदाहरण के लिए आँसू के पर्याय आप जानना चाहते हैं तो इसके लिए पहले यह निश्चित करना होगा कि यह जल-स्थल खंड में होगा, मानवजगत खंड में होगा या मानवेतर जीव खंड में । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस मानवजगत खंड के मनुष्य वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ है । अब मनुष्य वर्ग में चलिए । पर्यायमालाओं के प्रमुख शब्द इस प्रकार आरम्भ होते हैं--शरीर, अंग, शिखा, चोटी, सिर, ललाट, जटा, कान, कनपटी, भौंह, बरौनी, आँख, आँख की पुतली, आँख का गोला, आँख का कोना, पलक, गाल, नाक, ओठ, ठुड्डी, पूँछ, दाढ़ी, मुँह, जीभ, दाँत, जबड़ा, तालु, कंठ, गरदन, कंधा, घंटी, छाती, स्तन, स्तन का अग्र भाग, काँख, कमर, कूल्हा, पेट, नाभि, पीठ, पसली, लिंग, अंडकोश, योनि, नितंब, मलद्वार, मलाशय, मूत्राशय, जाँघ, घुटना, पैर, एड़ी, पैर का तलवा, पैर की उँगली, बाँह, केहुनी (कोहनी?), हाथ, हथेली, हथेली के पीछे, उँगली, उँगली के पोर, नाखून, इन्द्रिय, थप्पड़, घूँसा, गोद, रोम, रोमांच, आँसू पसीना, चमड़ा...आदि-आदि ।

मेरा आशय है कि पन्नों पर पन्ने छानने और प्रकारान्तर से भटकने पर कहीं वांछित पर्यायमाला के दृष्टिगत होने की संभावना है ।

उक्त कोश के प्रकाशन के कोई बीस वर्ष बाद सन् 1954 में डी. भोलानाथ तिवारी का बृहद पर्यायवाची कोश इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ । यद्यपि इसमें खंडों की संख्या बढ़कर 8 हो गई फिर भी मुख्य ढाँचा पूर्ववत् ही रहा । मुख्य शब्दों का इसमें भी कोई क्रम नहीं, तो भी कोश की उपादेयता इस दृष्टि से बढ़ गई कि एक तो मूल शब्दों को संख्याबद्ध कर दिया गया और दूसरे कोश में प्रयुक्त समस्त शब्दों की अंत में अक्षरक्रम से सूची प्रस्तुत कर दी गई । अक्षरक्रम से दी हुई इस सूची के शब्दों के आगे उस मूल शब्द के खंड तथा क्रम संख्या का निर्देश है । जिस शब्द के पर्याय आपको चाहिए उसे पहले इस सूची में देख लीजिए और तब उसके आगे जिस खंड तथा क्रमसंख्या का उल्लेख हो वही पहुँच जाइए । आपको वांछित पर्याय मिल जाएँगे । इसकी दूसरी बड़ी विशेषता यह थी कि पर्यायमालाओं के समस्त पययि शब्द अक्षरक्रम से रखे गए थे । इसमें दो राय नहीं कि यह कोश अत्यंत लोकप्रिय भी रहा और अत्यंत उपयोगी भी सिद्ध हुआ ।

1974 में कोशी से राजेश दीक्षित का आदर्श हिन्दी पर्यायवाची कोश निकला । यह कोश पद्धति की दृष्टि से शुक्ल जी के कोश से विशेष भिन्न नहीं था ।

पिछले दशक में दो पर्यायवाची कोश सामने आए । इनमें से एक है अभिनव पर्यायवाची कोश और दूसरा है हिन्दी-अंग्रोजी पर्यायवाची कोश।2 ये दोनों दिल्ली से प्रकाशित हुए हैं । इन दोनों कोशों की विशेषता यह है कि इनमें खंडों और वर्गों में पर्यायमालाओं को बाँटने का झंझट ही समाप्त कर दिया गया है । पर्यायमालाओं के प्रमुख शब्दों को अक्षरक्रम में लगाया गया है । पाठकों के लिए यह पद्धति निश्चित रूप से सरल और सुविधाजनक सिद्ध हुई है ।

दो शब्द प्रस्तुत पर्यायवाची कोश के संबंध में भी । कार्य-पद्धति निर्धारित करते समय जो बातें मेरे ध्यान में आई उन पर यहाँ संक्षेप में विचार कर लें तो अच्छा हो ।

विषय-सूची

भूमिका

5

1

पर्यायवाची कोश

17

2

विपर्याय कोश

217

3

पर्याय शब्दों की सूची (अनुक्रमणिका)

241

Sample Pages







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